🇮🇳जयतु संस्कृतम्
🇮🇳जयतु भारतम्
🇮🇳जयतु भारतम्
महाविद्यालय में मेरा प्रवेश 2/8/15 को हुआ था।लेकिन उसके लिए,वहाँ आना-जाना जून से लगा रहा।
मैं जब भी वहाँ गया,तो कोई भी जानकारी सही से नही मिल पाती थी।यही समस्या सभी छात्रों को रहती थी।
बार-बार इधर-उधर दौड़ना पढ़ता था।
मैं जब भी वहाँ गया,तो कोई भी जानकारी सही से नही मिल पाती थी।यही समस्या सभी छात्रों को रहती थी।
बार-बार इधर-उधर दौड़ना पढ़ता था।
जब कक्षाएँ लगने लगी तो मुख्य तीन विषयों इतिहास,संस्कृत एवं दर्शनशास्त्र के अतिरिक्त आधार पाठ्यक्रम(फाउन्डेशन)की कक्षाओं की भी भी सही से जानकारी नही मिल पाती थी।बस भीड़ के साथ इधर-उधर,कारण एक ही महाविद्यालय में छात्रों की संख्या पूरे मप्र सबसे अधिक।
फिर महीने भर में धीरे-धीरे सब समझ आने लगा।
फिर भी कोई जानकारी होती तो एक दूसरे से लेना।बार बार पूछना परेशान होना।फिर भी आधी-अधूरी ही जानकारी मिलना।
फिर महीने भर में धीरे-धीरे सब समझ आने लगा।
फिर भी कोई जानकारी होती तो एक दूसरे से लेना।बार बार पूछना परेशान होना।फिर भी आधी-अधूरी ही जानकारी मिलना।
महाविद्यालय में उस समय 8000 से अधिक विद्यार्थी थे।जिनमें से कुछ नियमित पढने आते,कुछ नियमित घुमने के लिए।
कुछ जानबूझकर पढ़ने नही आते कुछ,परिस्थितिवश तो कुछ बहुत दूर से थे।तो वाहन की कमी और समय की व्ययता के कारण नही आते थे।
इसमें सबसे बड़ी समस्या तो तब होती,जब उन्हें कोई सूचना समय से नही मिल पाती थी।
कुछ जानबूझकर पढ़ने नही आते कुछ,परिस्थितिवश तो कुछ बहुत दूर से थे।तो वाहन की कमी और समय की व्ययता के कारण नही आते थे।
इसमें सबसे बड़ी समस्या तो तब होती,जब उन्हें कोई सूचना समय से नही मिल पाती थी।
Continue,,,,,,,,,,
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